Hinid Murli-21.03.13
मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - सच्चे बाप के साथ सच्चा होकर रहो
तो कदम-कदम पर पदमों की कमाई जमा होती जायेगी''
प्रश्न:- कौन सी प्राप्ति भगवान के सिवाए दूसरा
कोई करा नहीं सकता है?
उत्तर:- मनुष्यों को चाहना रहती है हमें शान्ति
वा सुख मिले। शान्ति मिलती है मुक्तिधाम में और सुख मिलता है जीवनमुक्ति में। तो
मुक्ति और जीवनमुक्ति इन दोनों चीजों की प्राप्ति भगवान के सिवाए दूसरा कोई करा न
सके। तुम बच्चों को अब ऐसी भटकती हुई आत्माओं पर तरस आना चाहिए। बिचारे रास्ता
ढूंढ रहे हैं, भटक रहे हैं। उन्हें रास्ता दिखाना है।
गीत:- इन्साफ की डगर पर..
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मुक्ति के लिए बाप को याद कर विकर्म विनाश करने हैं और
जीवनमुक्ति के लिए स्वदर्शन चक्रधारी बनना है, पढ़ाई पढ़नी है।
2) रहमदिल बनकर भटकने वालों को घर का रास्ता बताना है। मुक्ति और
जीवनमुक्ति का वर्सा हर एक को बाप से दिलाना है।
वरदान:- महावीर बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले
वाहनधारी सो अलंकारधारी भव
महावीर अर्थात् शस्त्रधारी। शक्तियों वा पाण्डवों को सदा वाहन
में दिखाते हैं और शस्त्र भी दिखाते हैं। शस्त्र अर्थात् अलंकार। वाहन है श्रेष्ठ
स्थिति और अलंकार हैं सर्व शक्तियां। ऐसे वाहनधारी और अलंकारधारी ही साक्षात्कार
मूर्त बन बाप का साक्षात्कार करा सकते हैं। यही महावीर बच्चों का कर्तव्य है।
महावीर उसे ही कहा जाता है जो अपनी उड़ती कला द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार कर
ले।
स्लोगन:- एकरस पुरुषार्थ द्वारा ऊंची स्थिति बना
लो तो हिमालय जैसा बड़ा पेपर भी रूई हो जायेगा।
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