मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हें
घर बैठे भगवान बाप मिला है तो तुम्हें अपार खुशी में रहना है, विकारों के
वश खुशी को दबा नहीं देना है''
प्रश्न:- तुम बच्चों में लकी किसको कहेंगे और अनलकी किसको कहेंगे?
उत्तर:- लकी वह है जो बहुतों को आप समान बनाने की सेवा करते, सबको सुख देते हैं और अनलकी वह हैं जो सिर्फ सोते और खाते हैं।
एक दो को दु:ख देते रहते हैं। पुरुषार्थ में कमी होने से ही अनलकी बन जाते हैं।
प्रश्न:- जिन बच्चों के तीसरे नेत्र का आपरेशन सक्सेसफुल होता है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:- वह माया के तूफानों में घड़ी-घड़ी गिरेंगे नहीं, ठोकर नहीं खायेंगे। उनकी दैवी चलन होगी। धारणा अच्छी होगी।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन....
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) एक बाप की मत में बाप, टीचर, गुरू, बन्धु आदि की सब मतें समाई हुई हैं, इसलिए उनकी मत पर ही चलना है। मनुष्य मत पर नहीं।
2) बीती को बीती कर पुरुषार्थ में गैलप करना है। ड्रामा कहकर ठण्डा नहीं होना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों से सेफ रहने वाले मायाप्रूफ भव
जो बच्चे एक बाप के लव में लवलीन रहते हैं वे सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से, वायुमण्डल से दूर रहते हैं क्योंकि लीन रहना
अर्थात् बाप समान शक्तिशाली सर्व बातों से सेफ रहना। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना, जो समाये हुए हैं वही मायाप्रूफ हैं।
यही है सहज पुरुषार्थ, लेकिन सहज पुरुषार्थ के नाम पर अलबेले नहीं बनना। अलबेले पुरुषार्थी का मन अन्दर से खाता है और
बाहर से वह अपनी महिमा के गीत गाता है।
स्लोगन:- पूर्वज पन की पोजीशन पर स्थित रहो तो माया और प्रकृति के बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे।
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